समझा जिसने खुद को न हो ,
समझाता वो हर किस को है,
हरगिस जिसको मंज़ूर नहीं ,
औरों की अपने आगे सुनना ,
न सुनता, न ही जताता है ,
पर को ही गलत ठहराता है ,
क्या वो स्वीकार कर पायेगा ?
क्या वो प्यार कर पायेगा ?
झूठे ख़्वाबों की रच ली दुनिया,
उसे पाने की जिद्द करता है ,
सपने जब पूरे न होते ,
जल जाता और बिफरता है ,
जो नींद से जाग न पाया हो ,
हाथों में सपना क्या लेगा,
खुद कोशिश न कर अपनी वो,
दुनिया से अड़ा ही करता है ,
बिन बात किये क्या हल निकले ,
सबका गर दोष जतायेगा,
खुद, खुद को समझ पायेगा?
क्या वो प्यार कर पायेगा ?
झूठों में खुद को घेर लिया ,
अब उसे झूठ, सच लगता है ,
खुद को सही ठहरानें को ,
एक फौज खड़ी कर ली उसने,
जो उसको समझा करती है ,
हर बात में हाँ जो करती है ,
वो उसको क्या समझाएगी ?
जिसने सफर किया न हो ,
वो क्या ही पथ दिखलायेगी ,
अधूरी बातों से , वो बातें और बनायेगी ,
उन बातों में उलझाकर खुद को ,
क्या वो कुछ सुलझा पायेगा ?
क्या वो प्यार कर पायेगा?
स्वार्थ में जो है ढूंढ रहा ,
अपने प्रेमी की प्रतिमा को ,
स्वार्थ भला कब रुकता है,
कल तिल भर था,
कल पर्वत होगा,
स्वार्थ सिद्ध कर लेगा वो,
या प्रेम प्राप्त कर लेगा वो,
दोनों दो डोलती नैया हैं ,
दोनों पे जो चढ़ जाएगा ,
क्या वो संभल पायेगा?
क्या वो प्यार कर पायेगा?
मै उसको स्वीकार रहा,
खुद को दोषी मान रहा ,
इस उलझन को सुलझाने को,
मै स्वार्थ अपना त्याग रहा ,
पर मै तो बस एक पहिया हूँ ,
मुझसे गाडी क्या चल लेगी,
जब दूजा साथ न दे पहिया,
क्या यात्रा पूरी कर लेगी ?
गाड़ी डामाडोल सही ,
एक पहिये से चल लेंगे हम,
जीवन का चक्र एक ही है,
बिन दूजे के बढ़ लेंगे हम ,
पर प्रश्न हमेशा होगा मन में ,
जिसने न है स्वीकार किया,
न समझा न सुलझाया है,
स्वार्थ में खुद के फंस कर ,
झूठ का महल बनाया है ,
क्या कभी वो फिर से सुलझ पायेगा?
कभी, किसी से भी,
क्या वो प्यार कर पायेगा?
क्या वो प्यार कर पायेगा?